उद्योग जगत के बड़े नाम और टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा (Ratan Tata) का बुधवार को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी। चूंकि वे पारसी समुदाय से थे, इसलिए उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ।
पारसी समुदाय में हिंदू या मुसलमानों की तरह दाह संस्कार या दफनाने की परंपरा नहीं होती। उनके अनुसार, मानव शरीर को प्रकृति का उपहार माना जाता है, जिसे उसे लौटाना होता है। पारसी मान्यताओं के अनुसार, दाह संस्कार या दफनाने से प्रकृति के तत्व – जल, वायु और अग्नि को नुकसान पहुँच सकता है, इसलिए वे अलग तरह से अंतिम संस्कार करते हैं।
सुबह के समय, जब अंतिम संस्कार की तैयारी होती है, तो सबसे पहले शव को नहलाया जाता है। इसके बाद, पारंपरिक पारसी कपड़े पहनाए जाते हैं, जिसे खासतौर पर नास्सेसलार नाम के लोग करते हैं, जो शव की देखभाल के लिए जिम्मेदार होते हैं। शव को फिर सफेद कपड़े में लपेटा जाता है, जिसे ‘सुद्रेह’ (एक सूती बनियान) और ‘कुस्ती’ (कमर पर पहना जाने वाला पवित्र धागा) कहा जाता है।
इसके बाद, शव को अंतिम विश्राम स्थल तक ले जाने से पहले पारसी पुजारियों द्वारा प्रार्थनाएं की जाती हैं। ये अनुष्ठान मृतक की आत्मा को शांति से परलोक तक पहुंचाने के लिए होते हैं। परिवार और करीबी लोग इन प्रार्थनाओं में शामिल होते हैं और मृतक को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं।
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Toggleदख्मा (मौन का टॉवर)
पारसी समुदाय में परंपरागत रूप से जब किसी व्यक्ति का निधन होता है, तो उनके शव को ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ या ‘दखमा’ नामक स्थान पर ले जाया जाता है। यह एक विशेष संरचना होती है, जो पारसी धर्म के अंतिम संस्कार के लिए बनाई गई है। यहां शव को ‘दखमा’ की ऊपरी सतह पर रखा जाता है, जहां गिद्ध और अन्य मांसाहारी पक्षी उसे खाते हैं।
इस प्रक्रिया को ‘दोखमेनाशिनी’ कहा जाता है, जिसका उद्देश्य शव को प्रकृति में वापस लौटाना है, बिना पृथ्वी, जल या अग्नि को प्रदूषित किए। गिद्ध शव के मांस को खा लेते हैं और बचे हुए हड्डियों को एक खास जगह पर रख दिया जाता है, जहां समय के साथ वे नष्ट हो जाती हैं।
अंतिम संस्कार के लिए आधुनिक अनुकूलन
गिद्धों की घटती संख्या और पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों के चलते अब पारसी समाज को अपने अंतिम संस्कार की परंपराओं में कुछ बदलाव करने पड़े हैं। कई शहरी क्षेत्रों में शवों के अपघटन को तेज करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाने लगा है।
कुछ पारसी परिवार अब इलेक्ट्रिक दाह संस्कार को चुनने लगे हैं, जिसे पर्यावरण के लिए बेहतर और ज्यादा व्यावहारिक माना जा रहा है।
जब ‘दखमा’ की परंपरागत विधि से अंतिम संस्कार संभव नहीं होता, तो शव को इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में ले जाया जाता है, जहाँ दाह संस्कार इस तरह से किया जाता है कि पृथ्वी, अग्नि, या जल को दूषित न किया जाए, ताकि पारसी धर्म के सिद्धांतों का पालन हो सके।
Ratan Tata का राजकीय अंतिम संस्कार
महाराष्ट्र सरकार ने यह महत्वपूर्ण घोषणा की है कि देश के प्रमुख उद्योगपति और समाजसेवी रतन टाटा (Ratan Tata) का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। यह फैसला उनके देश के प्रति किए गए असाधारण योगदान को सम्मान देने के लिए लिया गया है। रतन टाटा (Ratan Tata) ने उद्योग, व्यापार, सामाजिक कल्याण और राष्ट्रीय विकास में जो अमूल्य योगदान दिया है, उसे ध्यान में रखते हुए यह सम्मान उन्हें दिया जा रहा है।
उनके पार्थिव शरीर को दक्षिण मुंबई के नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) में रखा गया है। यहाँ पर लोग उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें, यह व्यवस्था की गई है। रतन टाटा (Ratan Tata) के योगदान को सम्मानित करने के लिए सभी वर्गों के लोग बड़ी संख्या में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंच रहे हैं।
आज दोपहर 3.30 बजे उनके पार्थिव शरीर को वर्ली श्मशान घाट ले जाया जाएगा, जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। अंतिम यात्रा के दौरान मुंबई की सड़कों पर भीड़ उमड़ने की संभावना है, क्योंकि रतन टाटा (Ratan Tata) के प्रशंसक, उनके करीबी और देश भर के लोग उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए एकत्र हो रहे हैं।
इस ऐतिहासिक मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल होंगे। सरकार के शीर्ष अधिकारी, उद्योग जगत के प्रतिष्ठित लोग, और समाजसेवियों का इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शामिल होने की उम्मीद है। रतन टाटा (Ratan Tata) का योगदान सिर्फ उद्योग तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाई थी। यही कारण है कि उनके निधन से देश में एक बड़ी कमी महसूस की जा रही है, और उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ करने का फैसला राष्ट्र की ओर से उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है।